Story of Vivekanand – डर की सच्चाई

Story of Vivekanand: बहुत समय पहले की बात है। कोलकाता शहर में एक छोटा बच्चा रहता था, जिसका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। यही नरेंद्रनाथ आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध हुए। वह एक बहुत ही होशियार और जिज्ञासु बच्चे थे। वे हमेशा नई बातें सीखना और समझना चाहते थे। साथ ही, वे निडर और बहादुर भी थे।

नरेंद्र को अपने दोस्तों के साथ खेलना बहुत पसंद था, लेकिन उनका दिमाग में हमेशा अनेकों सवाल आते रहते थे। वे हर बात की सच्चाई जानने की कोशिश करते थे।

Story of Vivekanand – बरगद के पेड़ का भूत

एक दिन, नरेंद्र और उनके दोस्त पास के एक बड़े बरगद के पेड़ के पास खेल रहे थे। वह पेड़ बहुत पुराना और बड़ा था। उसकी जड़ें रस्सियों जैसी लटक रही थीं, और बच्चे उन्हें पकड़कर झूलते और मज़ा करते थे। वे मस्ती कर रहे थे, तभी अचानक एक लड़के ने चिल्लाकर कहा, “इस पेड़ के पास मत जाओ! इसमें भूत रहता है।”

Story of Vivekanand
Story of Vivekanand

सभी बच्चे डर गए। उनमें से एक लड़के ने कहा, “मेरे दादाजी ने बताया था कि इस पेड़ में भूत रहता है। वह किसी को भी नुकसान पहुंचा सकता है!”

यह सुनते ही बच्चे डरकर वहां से भागने लगे। लेकिन नरेंद्र वहीं खड़े रहे। उन्होंने कहा, “भूत? मै तो नहीं मानता!”

उनके दोस्त ने डरते हुए कहा, “लेकिन अगर भूत सच में हुआ तो?  वह तुम्हें परेशान करेगा।”

नरेंद्र ने आत्मविश्वास से कहा, “अगर भूत है, तो हम पहले इसे खुद देखेंगें। बिना देखे क्यों डरें?”

इसके बाद नरेंद्र उस बरगद के पेड़ के पास गए। उन्होंने पेड़ को ध्यान से देखा और फिर उस पर चढ़ना शुरू किया। उनके दोस्त दूर से उन्हें रोकने की कोशिश करते रहे, लेकिन नरेंद्र नहीं रुके। उन्होंने धीरे-धीरे पेड़ के ऊपर तक चढ़कर सब तरफ देखा।

ऊपर सिर्फ पत्ते, टहनियां और पक्षी थे। भूत का कोई नामोनिशान नहीं था। वे नीचे उतरे और मुस्कुराते हुए अपने दोस्तों से कहा, “देखा, यहां कोई भूत नहीं है। यह सिर्फ एक पेड़ है। डर हमारे मन में होता है। अगर हम उसका सामना करें, तो वह गायब हो जाता है।”

उनके दोस्तों ने उनकी हिम्मत की तारीफ की। एक लड़के ने पूछा, “तुम डरते क्यों नहीं हो, नरेंद्र?”

नरेंद्र ने जवाब दिया, “मैं डरता तो हूं, लेकिन मैं यह भी जानना चाहता हूं कि मेरा डर सच है या झूठ। अगर हम डर से भागते हैं, तो वह हमें और डराता है। लेकिन जब हम उसका सामना करते हैं, तो डर खत्म हो जाता है।”

Story of Vivekanand- बैल का सामना

एक और दिन की बात है जब नरेंद्र स्कूल से घर लौट रहे थे। रास्ते में एक तंग गली थी, और वहीं एक बड़ा बैल खड़ा था। बैल बहुत गुस्से में लग रहा था। उसकी आंखें लाल हो रही थीं, और वह जमीन पर अपने पैर पटक रहा था।

लोग डर से दूर खड़े होकर बोले, “इस बैल के पास मत जाओ! यह हमला कर सकता है।”

नरेंद्र ने बैल की तरफ देखा। वह एक पल के लिए रुके और सोचा, “क्या मुझे वापस जाना चाहिए? या कोई और रास्ता लेना चाहिए?” लेकिन फिर उन्होंने सोचा, “अगर मैं डरकर भागूंगा, तो बैल सच में मेरे पीछे आ जाएगा। मुझे इसका सामना करना चाहिए।”

वे धीरे-धीरे बैल की तरफ बढ़ने लगे। लोग चिल्लाने लगे, “ए लड़के भाग जाओ!” लेकिन नरेंद्र भागे नहीं। उन्होंने शांत और निडर होकर चलना जारी रखा।

बैल ने उन्हें देखा, लेकिन उसने कुछ नहीं किया। वह बस खड़ा रहा। नरेंद्र बिना रुके बैल के पास से निकल गए।

लोग हैरान रह गए। उन्होंने पूछा, “तुमने ऐसा कैसे किया?  उस बैल ने तुम्हें चोट क्यों नहीं पहुंचाई?”

नरेंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा, “अगर मैं डरकर भागता, तो बैल मुझे दौड़ाने लगता। लेकिन मैंने उसका सामना किया तो वह शांत हो गया। डर भी ऐसा ही होता है। जब हम डरते हैं, तो डर और बड़ा हो जाता है। लेकिन जब हम उसका सामना करते हैं, तो वह खत्म हो जाता है।”

निडर बनने की सीख

नरेंद्र के जीवन ये छोटे-छोटे अनुभव उनकी जिंदगी में बड़े सबक बने। उन्होंने सीखा कि डर केवल मन की एक कल्पना है। अगर हम उसका सामना करें, तो हम हर डर पर जीत पा सकते हैं। यही बातें आगे चलकर उनके जीवन की शिक्षाओं का हिस्सा बनीं।

जब नरेंद्र बड़े हुए और स्वामी विवेकानंद के रूप में प्रसिद्ध हुए, तो उन्होंने पूरी दुनिया को यह सिखाया कि डर को कैसे हराया जाए।


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कहानी से सीख इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि डर केवल हमारे मन में होता है। अगर हम उससे भागते हैं, तो वह और बढ़ता जाता है, लेकिन जब हम उसका सामना करते हैं, तो वह खत्म हो जाता है। सच्चाई को जानने और साहस रखने से हम किसी भी डर से जीत सकते हैं।

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