हमारे जीवन की बहुत सी स्मृतियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें हम चाह कर भी नहीं भूल पाते हैं, फिर वह हमारा बचपन हो या जीवन की कोई और अवस्था। अपनी कुछ ऐसी ही अविस्मरणीय स्मृतियाँ आज मैं आप सबके साथ साझा कर रही हूँ।
जीवन के एक समय में जब मेरा रूझान कविताओं के प्रति बहुत अधिक था, वह समय मेरे लिए आज भी अविस्मरणीय है, अपने जीवन के उस दौर में मैंने भी कुछ कविताओं की रचना की थी, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं –
स्मृतियाँ – हिन्दी कविताऐं
“है मौन अव्यक्त दोनों के मध्य में , पाया नहीं जिसका राज़ अब तक किसी ने , फिर भी है कोई दुःखमय हलचल, कर दिया उत्पन्न जिसने कोलाहल , थाह मिलेगी किसको उसकी, समझ नहीं पाया जिसको कोई अब तक भी,छाया है हर तरफ अंधकार, अव्यक्त शांत, स्निग्ध, मौन विस्तार, मौन शांत गुज़र रहा है जो, लगता देगा कोई प्रिय वस्तु हमको, क्यों हो हैरान परेशान , है प्यारी सारी सृष्टि, ठहर मान, क्यों कोई उसे समझ न पाया, घोर अन्धकार, तिमिर क्यों मन भाया।”
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“मरण के इस चक्रव्यूह में, है किस ज़िंदगी की तलाश, थक चुके हैं सभी, फिर भी, है क्यों उस पल की आस, न होगा जिसमे खालीपन का अहसास। चुप हैं क्यों चीख़ें चिल्लाहटें सभीं हर्ष वेदना का क्यों नहीं जरा भी भास, विरक्ति के इन ही क्षणों में है शायद, निर्वाण का अनंत आकाश।”
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“कहीं खिली एक कली, भोली प्यारी मुस्कान लिए, मानों छू लेगी इससे अनंत आकाश की गहराई, लगी देखने इस जहाँ को आश्चर्य चकित अचंभित, समझ भी न पायी थी कि क्या है यह जीवन ? तभी तोड़ दिया दो हाथों ने बढ़ कर उसको, खो गई वह मुस्कान प्यारी, छुप गई उत्सुकता सारी।”
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“कितनी ही कोशिशों के बाद भी शायद भुला नहीं पायी हूँ तुम्हें आज भी, अपने उलझे बालों में है, तुम्हारी उँगलियों का अहसास मुझे आज भी, अपने आँगन में फैली चांदनी, धीमा धीमा सा बजता कोई गाना, और हम सबका तुम्हारे साथ मिलकर खिलखिलाना मुझे, शायद हम सभी को, याद है आज भी। मुझे याद है तुम्हारी आखों की उदासी व सूनापन किसी भी पल छलक पड़ने को झिलमिलाते बेबस आँसू, और उन सब के बीच तुम्हारी वह गहरी चाहत जिंदगी के साथ न चल पाने की छटपटाहट मुझे रूला देती है आज भी। तुम्हारी आहों व कराहों का वह धीमा सा स्वर, अपनी ही आवाज से डरता सहमता सा तुम्हारा मन, और किसी से भी लिपट पड़ने को तुम्हारी बेचैन बाहें, मुझे याद है आज भी, रात के अधेंरे की कोई आहट और मेरे मन पर छाया तुम्हारा झीना सा अक्स, रूला क्यों देता है मुझे आज भी।” hindireadings.com
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“रह रहें हैं यहाँ अपने से अनजान सब भर दो इस शून्य तुम ही अब। क्यों दिया तुमने सबको यह वरदान कर दिया जिसने मन में अन्धकार। खोया है क्यों ? हर कोई अपने में पाने को वह क्षणिक सुख अपने अपने सपने में। लगता चाहता है हर कोई जीना उस पल में जो देगा प्यार कुछ अपने पन में। हो तुम भी क्यों अब असमंजस में दिया था तुमने ही तो, यह पीड़ामिश्रित सुख सबमें। भाग रहें हैं जब हम पीछे उस मृगतृष्णा के हो उद्वेलित तुम करते क्यों नहीं दीप्यमान जीवन हम सबके।”
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“अकेलेपन की यह खामोशियाँ था प्यार जिनमें कभी, क्यों तोड़ रही हैं मेरे मन और मस्तिष्क को आज। मुस्कुराती हर शाम की आँखों में है क्यों आँसू आज, घबरा कर पुकारा जब भी तुम्हें , पाया था साथ तुम्हारा हर बार। पर खोया है क्या आज मेरा क्यों है सन्नाटा हर तरफ आज, खुला खुला सा था जो आसमाँ कभी, बंद क्यों है मुठ्ठी में मेरी आज।”
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