BIOS एक प्रोग्राम है जिसका तात्पर्य बेसिक इनपुट/आउटपुट सिस्टम से है। यह प्रोग्राम कंप्यूटर के मदरबोर्ड पर एक चिप में स्टोर होता है। जब कंप्यूटर स्टार्ट किया जाता है, तो सबसे पहले BIOS प्रोग्राम रन (Run) होता है। ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) लोड होने से पहले, सीपीयू BIOS तक पहुंचता है।
तत्पश्चात, BIOS का अगला कार्य सभी हार्डवेयर कनेक्शन की जांच करना और कम्प्यूटर से जुड़े सभी उपकरणों का पता लगाना होता है। यह कंप्यूटर को प्रारंभ करने और उसके हार्डवेयर को कॉन्फ़िगर करने का कार्य करता है।
यह कंप्यूटर के ऑपरेटिंग सिस्टम (OS) और उससे जुड़ी हुई डिवाइसों, जैसे हार्ड डिस्क, वीडियो एडाप्टर, कीबोर्ड, माउस और प्रिंटर आदि के बीच डेटा के प्रवाह को भी मैनेज करता है। इसकी की सेटिंग्स को, ROM (Read Only Memory) में स्टोर होने के कारण है, पुनः प्राप्त किया जा सकता है।
BIOS शब्द का आविष्कार 1975 में अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक गैरी किल्डल द्वारा किया गया था। 1981 में आईबीएम के पहले पर्सनल कंप्यूटर में इसे शामिल किया गया था और आने वाले वर्षों में, अन्य PCs के अंदर भी इसको प्रयोग किया गया, कुछ समय के लिए यह कम्प्यूटर का एक अभिन्न अंग बन गया था, हालांकि, इस की लोकप्रियता एक नई तकनीक “यूनिफाइड एक्सटेंसिबल फर्मवेयर इंटरफेस (UEFI)” के आने से कम हो गई है।
यह डिस्प्ले स्क्रीन, कीबोर्ड और अन्य कार्यों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक होता है। BIOS एक इन-बिल्ट सॉफ्टवेयर है जो हार्ड ड्राइव को मैनेज करता है।
यूजर्स BIOS के इंटरफ़ेस का उपयोग करके विभिन्न कार्य कर सकते हैं, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार से हैं:
- हार्डवेयर का कन्फिग्यरैशन(Configuration) किया जा सकता है
- बूट Drives को सेलेक्ट कर सकते हैं
- सिस्टम की क्लाक को सेट किया जा सकता है
- इसके द्वारा सिस्टम के कुछ कम्पोनेन्ट को इनैबल या डिसैबल किया जा सकता है
सिस्टम के Boot होने के पश्चात यह इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस और CPU के बीच मध्यस्तता करता है। बूटिंग के समय डिलीट या F2 Key को प्रेस करके आप इसके सेटअप को एक्सेस कर सकते हैं।
कुछ आधुनिक PCs में BIOS की इनफार्मेशन को रीराइट भी किया जा सकता है, यद्यपि उसके लिए स्पेशल सॉफ्टवेयर की आवश्यकता होती है, जोकि मैन्युफैक्चरर ही provide करता है।
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कंप्यूटर पर विंडोज 7, विंडोज 8, विंडोज 10, विंडोज एक्सपी या कोई अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम इंस्टॉल है क्योंकि यह ऑपरेटिंग सिस्टम से अलग कार्य करता है।
Functions of BIOS
इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित है:
- Power on Self-Test (POST): पावर-ऑन सेल्फ-टेस्ट (POST) कंप्यूटर स्टार्ट होने के तुरंत बाद फर्मवेयर या सॉफ़्टवेयर द्वारा किए गए कुछ प्रोग्राम्स का सेट होता है, जो यह निर्धारित करते हैं कि हार्डवेयर अपेक्षा के अनुसार काम कर रहा है या नहीं।
प्रोसेसिंग तभी आगे बढ़ती है जब आवश्यक हार्डवेयर सही ढंग से काम कर रहा होता है, अन्यथा यह एक एरर मैसेज शो करेगा। जब सारे टेस्ट पास हो जाते हैं, तो, POST बीप्स के द्वारा OS को सूचित करता है।
- Bootstrap Loader: जब POST सफलतापूर्वक एक्ज़िक्यूट हो जाता है, तो बूटस्ट्रैपिंग इनैबल होता है। बूटस्ट्रैपिंग OS को इनिशेलाइज़ करता है।
- BIOS drivers: BIOS ड्राइवर Non Volatile Memory में स्टोर होते हैं। जिनका प्राथमिक कार्य कंप्यूटर हार्डवेयर की जानकारी प्राप्त करना है।
- Setup Utility Program: इसको CMOS सेटअप के रूप में भी जाना जाता है, यह यूजर्स को हार्डवेयर सेटिंग्स के साथ-साथ डिवाइस सेटिंग्स, डेट, टाइम, कंप्यूटर पासवर्ड को कॉन्फ़िगर करने की अनुमति देता है।
- Complementary metal-oxide semiconductor (CMOS) setup: यह एक कॉन्फ़िगरेशन प्रोग्राम है जो यूजर्स को हार्डवेयर और सिस्टम की सेटिंग्स को बदलने में सक्षम बनाता है। CMOS ‘BIOS’ की non-volatile memory का नाम है।
Different types of BIOS
इसके मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं:
- UEFI: यूनीफ़ाइड इक्स्टेन्सबल फर्मवेयर इंटरफेस(Unified Extensible Firmware Interface)
- Legacy BIOS: यह नियंत्रित करता है कि सीपीयू और दूसरे कॉमपोनेन्टस एक दूसरे के साथ कैसे कम्युनिकेट करते हैं।
BIOS manufacturers
आधुनिक समय में, BIOS चिप्स के साथ मदरबोर्ड बनाने वाले विभिन्न मैन्यफैक्चरर हैं। जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- Foxconn
- AMI
- Hewlett Packard (HP)
- Ricoh
- Asus