Shaheed Udham Singh व जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड

Shaheed Udham Singh: ऊधम सिंह भारत के ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जीवन राष्ट्रवाद और बलिदान की कहानी है। जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’डायर की हत्या की योजना बनाई, यद्यपि जिसे क्रियान्वित होने में 20 साल लग गए।

ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के सुनाम गाँव में एक साधारण से सिख परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम शेर सिंह था। ऊधम और उनके बड़े भाई मुक्त सिंह बचपन में ही अनाथ हो गए थे। माता पिता के देहांत के बाद दोनों का पालन-पोषण अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में हुआ, जहाँ ऊधम सिंह ने प्रारंभिक शिक्षा और सिख धर्म में दीक्षा प्राप्त की। वहाँ उनके नाम को बदलकर उधम सिंह रख दिया गया। प्यार से लोग उन्हे ‘उडे’ कहते थे। कुछ समय के पश्चात उनके भाई की अचानक किसी बीमारी के कारण मृत्यु हो गई।

शहीद ऊधम सिंह ने कुछ समय तक ब्रिटिश भारतीय सेना में भी कार्य किया। लेकिन अधिकारियों के साथ संघर्ष के कारण जल्दी ही उन्हें पंजाब वापस आना पड़ा। 1919 में वे अनाथालय में वापस आ गए।

Udham+Singh

Shaheed Udham Singh व जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड

13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में घटित जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने ऊधम सिंह के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड, जिसमें हजारों निहत्थे भारतीयों पर ब्रिटिश सैनिकों ने जनरल रेजिनाल्ड डायर के आदेश पर गोलियाँ चलाईं थी, के समय वे वहाँ पर उपस्थित थे और इस भयानक हत्याकांड को उन्होंने अपनी आँखों से देखा था।

निर्दोष लोगों की निर्मम हत्या ने उनके मन में बदले की आग जला दी। इस घटना ने उनके जीवन को स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ़ मोड़ दिया और उन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया।

जिसके बाद ऊधम सिंह स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल हो गए। उन्होंने अफ्रीका, अमेरिका और यूरोप की यात्रा की, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत की आजादी के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना और ब्रिटिश अत्याचारों के बारे में जागरूकता फैलाना था। इस यात्रा के समय, उन्होंने कई क्रांतिकारियों, और स्वतंत्रता सेनानियों से मुलाकात की, जिनमें गदर पार्टी के सदस्य भी शामिल थे। गदर पार्टी भारत की आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष का समर्थन करती थी।

1927 में वे भगत सिंह के बुलाने पर भारत वापस आए व अपने साथ गोला बारूद तथा अपने 25 सहयोगियों को भी लेकर आए। जिसके बाद बिना लाइसेंस के हथियार रखने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया व उन्हे पाँच साल की जेल हुई।

1931 में जेल से छूटने के पश्चात वे पुलिस से बचते हुए जर्मनी पहुँच गए व 1934 में वे लंदन जाकर वहाँ बस गए। यहाँ रहकर उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों की गतिविधियों पर नजर रखी, खासकर माइकल ओ’डायर पर, जो जलियांवाला बाग हत्याकांड का मुख्य दोषी माना जाता था।

माइकल ओ’डायर की हत्या

माइकल ओ’डायर की हत्या की उनकी निजी योजना 13 मार्च 1940 को सफल हुई। उस दिन, वे लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की बैठक में शामिल हुए, जहाँ माइकल ओ’डायर भाषण देने वाला था। जैसे ही ओ’डायर ने अपना भाषण समाप्त किया, ऊधम सिंह ने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाली और ओ’डायर को दो बार गोली मारी, जिससे उसकी तुरंत ही मृत्यु हो गई।

हत्या के बाद, ऊधम सिंह ने भागने की कोई कोशिश नहीं की। उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। अपने मुकदमे के दौरान, उन्होंने गर्व के साथ हत्या की जिम्मेदारी स्वीकार की और कहा कि उन्होंने अपने लोगों की हत्या का बदला लिया है। जेल में रहते हुए उन्होनें खुद को “राम मोहम्मद सिंह आज़ाद” नाम दिया, जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों—हिंदू, मुस्लिम और सिख—की एकता का प्रतीक था।

Udham Singh – शहादत और विरासत

31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह को लंदन के पेंटनविले जेल में फांसी दी गई। फांसी से पहले वे पूरी तरह से शांतचित्त थे, क्योंकि वह जानते थे उनका बलिदान आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता की लड़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित करेगा।

ऊधम सिंह की शहादत ने उन्हें भारत में राष्ट्रीय नायक बना दिया। 1974 में उनके अवशेषों को भारत लाया गया व उनके गाँव सुनाम में पूरे राज्य सम्मान के साथ उनका दाह-संस्कार किया गया। आज, ऊधम सिंह का नाम साहस और बलिदान का प्रतीक है, और वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों में से एक माने जाते हैं।

निष्कर्ष

आज जब हम स्वतंत्र भारत में रह रहें हैं, तो हमें ऊधम सिंह जैसे नायकों के बलिदानों को याद रखना चाहिए, जिन्होंने अपनी जान इसलिए दी ताकि आने वाली पीढ़ियाँ स्वतंत्र और शक्तिशाली देश में रह सकें।

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