इस आर्टिकल में हम Indian Music के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानेगें। संगीत को पृथ्वी पर लाने का श्रेय नारद मुनि को दिया जाता है। उन्होंने नाद ब्रह्म, वह जो ध्वनि पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है, के बारे में भी लोगों को शिक्षा दी।
Music को किसी भी संस्कृति की आत्मा माना जाता है। भारत में, संगीत या ध्वनि की उत्पत्ति ब्रह्मांड की उत्पत्ति से मानी जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, पहली ध्वनि नादब्रह्म (ध्वनि के रूप में ब्रह्मा) है, जो पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है। इसे ब्रह्माण्ड की सबसे शुद्ध ध्वनि माना जाता है।
एक अन्य Myth के अनुसार ध्वनि (और नृत्य) की उत्पत्ति को शिव के तांडव व ओंकार से जोड़ा जाता है। नृत्य की तरह, भारत में संगीत की उत्पत्ति भक्ति गीतों में हुई थी और यह धार्मिक और अनुष्ठानिक उद्देश्यों तक ही सीमित थी और इसका उपयोग मुख्य रूप से केवल मंदिरों में किया जाता था।
इसके बाद यह लोक संगीत और भारत के अन्य संगीत रूपों के साथ विकसित हुआ और धीरे-धीरे इसकी अपनी संगीत विशेषताएं प्राप्त हुईं।
History of Indian Music
भारतीय संगीत की उत्पत्ति के बारे में जानकारी सामवेद से ली जा सकती है, जिसमें संगीत के लिए निर्धारित किए गए श्लोक शामिल थे।
धार्मिक अनुष्ठानों में अभी भी वैदिक भजनों को उनके लिए सेट किए गए स्वर और उच्चारण के साथ शामिल किया जाता है।
भारतीय संगीत(Indian Music) के इतिहास को तीन प्रमुख कालों में विभाजित किया जा सकता है: प्राचीन काल, मध्यकालीन काल और आधुनिक काल।
प्राचीन काल का समय वैदिक काल से संगीत रत्नाकर के काल तक है, जिसके बाद मध्य कालीन काल की उत्पत्ति हुई।
14वीं शताब्दी में Indian Music दो भागों में विभाजित हो गया – हिन्दुस्तानी और कर्नाटक।
यह दोनों ही शाखाएँ बहुत विकसित हुईं और मजबूती से स्थापित हुईं।
इस समयावधि के दौरान अनेकों संगीतज्ञ और संगीतकार सामने आए, जिन्होंने राग, ताल और संगीत के रूपों को समृद्ध किया।
Pillars of Indian Music
राग(Raag), ताल(Taal) और स्वर( Swara) को Indian Music के तीन मुख्य स्तम्भ माना जाता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।
स्वर (Swara)
स्वर शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ ध्वनि होता है। ध्वनि के विभिन्न रूप होते हैं, लेकिन जो ध्वनि कानों को अच्छी लगती है और संगीतमय होती है उसे स्वर या सुर कहते हैं।
- स्वर मूलतयः वेदों के पाठ से जुड़ा हुआ है।
- बाद में, समय के साथ, यह शब्द किसी कंपोज़ीशन के ‘नोट’ या ‘स्केल डिग्री’ को बताने के लिए प्रयोग होने लगा।
- भरत ने नाट्यशास्त्र में स्वरों को बाईस स्वर स्केलों में विभाजित किया था।
- हिंदुस्तानी संगीत(Indian Music) के notational System को सात स्वरों द्वारा परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार हैं – सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी। इनको ही षडज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत व निषाद भी कहा जाता है। इन्हें दो भागों में बाँटा गया है – शुद्ध स्वर व विकृत स्वर।
- सा और प स्वरों को शुद्ध स्वर या अचल स्वर कहा जाता है और इनका एक निश्चित स्थान होता है।
- विकृत स्वरों के पुनः दो प्रकार होते हैं – कोमल और तीव्र।
- जिन स्वरों को उनकी मूल स्थिति से आधा स्वर ऊपर या नीचे गाया जाता है। उन्हें विकृत स्वर के नाम से जाना जाता है।
- रे, ग, ध, नि को नीचे आधा स्वर में गाया जा सकता है और कोमल स्वर के नाम से जाने जाते हैं।
- मा को इसके मूल स्वर से आधा स्वर ऊपर गाया जाता है और इसे तीव्र म के नाम से जाना जाता है।
- इस प्रकार कुल मिलाकर 12 स्वर हैं – 7 शुद्ध और 5 विकृत। 5 विकृत स्वरों में से 4 कोमल और 1 तीव्र है।
- इन ही सात स्वरों का सामूहिक नाम “सप्तक” कहलाता है।
Currency symbol of India | National Bird of India | National River of India |
National flag of India | National Song of india | Calander of India |
राग (Raga)
- ‘राग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के रंज शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है प्रसन्न करना, खुश करना और किसी को संतुष्ट करना।
- राग Melody की नींव के रूप में कार्य करती है, जबकि ताल को लय की नींव के रूप में जाना जाता हैं।
- प्रत्येक राग की मधुर संरचना विशिष्ट व्यक्तित्व और ध्वनियों से उत्पन्न मनोदशा के के आधार पर होती है।
- किसी राग का आवश्यक मूल तत्व वह स्वर होता है जिस पर वह आधारित होती है।
ताल (Tala)
- ताल, जिसे कभी-कभी टिटि या पिपी कहा जाता है, का शाब्दिक अर्थ है “ताली’।
- यह भारतीय शास्त्रीय संगीत(Indian Music) में म्यूजिकल मीटर को संदर्भित करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।
- ताल Beats का cycle होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में बीट्स को मात्रा भी कहा जाता है।
- Beats का एक cycle आवर्तन कहलाता है व आवर्तन की पहली ताल को ‘सम’ कहा जाता है।
- संगीत में ताल से अभिप्राय ‘लयबद्ध ताल समूहों’ से होता है।
- ताल अवधारणा के अनुसार संगीत के समय को सरल और जटिल मीटरों में विभाजित किया गया है।
- ताल का cycle 4 बीट्स से 100 से अधिक बीट्स तक हो सकता हैं।
- भारतीय शास्त्रीय कॉम्पोज़ीशन में 16, 14, 12, या 10 बीट cycle होते हैं।
Classification of Indian Music
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत मुख्यतः स्वर-केन्द्रित संगीत है। ‘संगीत’ शब्द का अर्थ उचित तरीके से गाने से है। संगीत को गायन, वाद्य संगीत और नृत्य का समायोजन कहा जा सकता है।
संगीत की दो प्रणालियाँ इस प्रकार है :
- उत्तरी संगीत प्रणाली – इसे हिंदुस्तानी संगीत भी कहा जाता है। चार दक्षिणी राज्यों को छोड़कर यह भारत में सभी जगह प्रचलित है।
- दक्षिणी संगीत प्रणाली – इसे कर्नाटक संगीत भी कहा जाता है। भारत के दक्षिणी राज्यों में दक्षिणी संगीत प्रणाली ही प्रचलित है।
Nava-Rasa of Indian Music
प्राचीन ग्रंथों में मूल नौ भावनाओं का वर्णन किया गया है। जिस प्रकार से तीन प्राथमिक रंगों से मिलकर ही सभी रंगों का निर्माण होता है, उसी प्रकार अन्य सभी भावनाओं को इन नौ मूल भावों से ही उत्पन्न माना जाता है।
यह नौ मौलिक भाव ही नव–रस या नौ भावनाएँ कहलाती हैं, जो इस प्रकार हैं –
हास्य, भयानक, रौद्र, करूणा, वीर, अद्द्भुत, वीभत्स, शांति व श्रृंगार
Musical Instruments
संगीत के लिए वाद्ययंत्र का होना आवश्यक है। भारतीय संगीत में वाद्ययंत्रों की चार प्रमुख पारंपरिक श्रेणियां हैं –घन वाद्य, अवनद्ध वाद्य, सुशिर वाद्य और तत् वाद्य। सभी संगीत वाद्ययंत्र विभिन्न वस्तुओं जैसे लकड़ी, बांस, धातु, मिट्टी आदि से बने होते हैं।
प्रत्येक वाद्ययंत्र की एक अलग शैली होती है और उसको बजाने का तरीका भी अलग अलग होता है। इनमें से अधिकांश वाद्यों की उत्पत्ति देवी-देवताओं के द्वारा हुई है ऐसा माना जाता है। उदाहरण के लिए वीणा, मृदंगम देवी सरस्वती, भगवान कृष्ण और नंदी से जुड़े हैं। यही कारण है कि संगीतकारों संगीत वाद्ययंत्रों की भी पूजा करते हैं।
कुछ हिन्दुस्तानी वाद्ययंत्रों के बारे में निम्न वर्णन किया गया है-
- तानपूरा – इसमें चार तार होते हैं। तुम्बा, तबली, गुरुच, कील दंड, मनका आदि तानपूरे के भिन्न भिन्न पार्ट्स हैं। इसको बजाते समय सातों स्वरों का प्रयोग किया जाता है।
- तबला – यह लकड़ी व मिट्टी का बना होता है। विभिन्न तालों को बजने के लिया इसका उपयोग किया जाता है। इसके कुछ पार्ट्स इस प्रकार हैं – लकड़ी, पूड़ी, गुदरी, गजरा, बद्दी, चाटी, सियाही, गट्टा आदि।